उन्नाव के भगवंत नगर से सात बार के विधायक रहे भगवती सिंह विशारद जी ने सोमवार की सुबह अंतिम सांस ली। वह 98 वर्ष के थे और कानपुर के धनकुट्टी में रहते थे, यहां से पार्थिव शरीर उन्नाव स्थित आवास ले जाया गया।
वर्ष 1921 में 23 सितंबर को उन्नाव के झगरपुर गांव में भगवती सिंह विशादर का जन्म हुआ था। वर्तमान में 98 वर्षीय विशारद जी कानपुर के धनकुïट्टी मोहल्ले में रह रहे थे। वह उन्नाव की भगवंत नगर विधानसभा क्षेत्र से सात बार विधायक रह चुके थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाजसेवा ही गुजार दिया। अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्र्राम आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने बीकॉम किया और फिर हिंदी साहित्य में विशारद किया, जो उपाधि नाम से जुड़ गई। वह अपने पीछे परिवार में बेटे रघुवीर, बहू कमला, पौत्र अनुराग, पौत्रवधू सुनीता, परपौत्र अभिषेक और पुत्र नरेश सिंह व बहू चंदा को छोड़ गए हैं। उनके पुत्र रघुवीर उन्नाव के गांव में रहते हैं।
सोमवार की सुबह विशारद जी ने घर में अंतिम सांस ली। उनका निधन होने की जानकारी पर आसपास के लोग शोक जताने घर पहुंच गए। परिवार के लोग उनका पार्थिव शरीर उन्नाव के पैतृक गांव लेकर रवाना हो गए, जहां पर नेत्र दान की प्रक्रिया होगी। उन्होंने 17 जनवरी 2010 को देहदान की शपथ ली थी, इसी क्रम में मंगलवार को मेडिकल कॉलेज की टीम पार्थिव शरीर को ले जाएगी।
*पैदल और साइकिल पर घूमकर की समाज सेवा।*
पैदल व साइकिल पर घूम कर समाजसेवा करने वाले विशारद जी के पास जीवन में कभी कार नहीं रही। दास कबीर जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया... कबीरदास जी की ये पंक्तियां उनपर एकदम सटीक बैठती हैं। सादगी की मिसाल विशारद जी पढ़ाई के बाद जनरलगंज में कपड़े की दुकान में काम करने लगे। धीरे-धीरे बाजार के कर्मचारियों की राजनीति करने लगे और कपड़ा कर्मचारी मंडल और बाजार कर्मचारी मंडल के प्रतिनिधि बन गए। यहां से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ और 1957 में वह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से भगवंत नगर सीट से चुनाव जीते। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी खत्म होने पर वह कांग्रेस में शामिल हो गए। विधायक रहते समय उनके हाथ में थैला रहता था, जिसमें उनका लेटर पैड और मुहर होती थी। किसी की समस्या सुनकर वह खुद पत्र लिखते और मुहर लगाकर उस विभाग में देने चल जाते थे।