- अफसरों के रवैये से नाराज दिखे पार्षद, वार्डों में काम को लेकर भी रहा आक्रोशनगर निगम का आखिरी सदन शनिवार को शुरु हुआ और साल का आखिरी सदन पार्षदों की अपनी-अपनी ढपली, अपने-अपने राग में सिमटा रहा। शुरूआत से लेकर आखिर तक नगर निगम के अफसर किसी भी सवाल का कोई माकूल जवाब नहीं दे पाए और पार्षद समय-समय पर विरोध दर्ज कराते रहे। फेरी नीति से लेकर विज्ञापन हो या फिर टेंडर का मामला हो, हर बार अफसर एजेंडे से लेकर अधिनियम के पन्ने ही पलटते रहे। अफसरों के इस रवैये पर पार्षदों ने उनके खिलाफ सदन के अंदर नारेबाजी भी की।
नगर निगम सदन शनिवार को शुरू हुआ तो पार्षदों का कोरम न पूरा होने की वजह से उसे एक घंटा स्थगित कर दिया। इसके बाद जब सदन शुरू हुआ तो पार्षदों ने बजट को लेकर ही सवालों की बौछार कर दी। पार्षदों का कहना था कि जब साल के अंतिम दिन बचे हैं तो अफसरों को बजट पास कराने की चिंता आ रही है। बजट में दर्शाई गई आय को लेकर जब पार्षदों ने पूछा कि किस मद में कितनी आय हुई और कितना व्यय हुआ तो मुख्य लेखाधिकारी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। सदन के अंदर भाजपा पार्षद सौरभ देव ने कहा कि जब हाईकोर्ट की रोक है तो फिर नगर निगम अफसरों ने एक कंपनी को किस आधार पर 25 साल का ठेका दे दिया। यहां पर कई अन्य कंपनियों के नाम गिनाते हुए कहा गया कि इनमें से कोई अधिनियम का पालन नहीं कर रही हैं। इस पर भी अपर नगर आयुक्त प्रथम एजेंडे के पन्ने ही पलटते रहे। अंत तक इस पर कोई जवाब सामने नहीं आया।
चीफ इंजीनियर के जवाब से असंतुष्ट रहे पार्षद
इस दौरान पार्षद धीरेंद्र त्रिपाठी ने टेंडर के एक फैसले का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि पिछली बार कार्यकारिणी की बैठक में फैसला हुआ था कि अगर कोई पार्षद 10 प्रतिशत से बिलो दरों पर टेंडर डालता है तो उसकी निविदा स्वतः निरस्त मानी जाएगी। इस पर जवाब देने के लिए जब चीफ इंजीनियर कैलाश सिंह मंच पर आए तो उन्होंने कार्यकारिणी के फैसले को गलत ठहरा दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा करना नियम सम्मत नहीं है और यह वित्तीय अनियमितता में आएगा। इसके बाद पार्षदों ने कार्यकारिणी में लिए जाने वाले फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर ऐसा है तो जिस समय प्रस्ताव पास किया गया, उस समय इंजीनियरिंग विभाग से इसके बारे में क्यों जानकारी नहीं दी गई, बाद में उस प्रस्ताव को निरस्त कर दिया गया। उर्सला अस्पताल के सामने आवंटित होने वाली दुकानों को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन न करने का आरोप लगाया गया।
नगर निगम के आखिरी सदन में पार्षदों ने की नारेबाजी, जवाब नहीं दे सके अधिकारी