सदन में पार्षदों के सवालों की बौछार पर असहज दिखे अधिकारी
अफसरों के रवैये के खिलाफ पार्षदों ने सदन के अंदर की नारेबाजी  

कानपुर। साल 2019 का आखिरी सदन जहां पार्षदों की अपनी-अपनी ढपली,अपने-अपने राग में सिमटा रहा, वहीं शुरूआत से लेकर आखिर तक नगर निगम के अफसर किसी भी सवाल का कोई माकूल जवाब नहीं दे पाए। फेरी नीति से लेकर विज्ञापन हो या फिर टेंडर का मामला हो,हर बार अफसर एजेंडे से लेकर अधिनियम के पन्ने ही पलटते रहे।अफसरों के इस रवैये पर पार्षदों ने उनके खिलाफ सदन के अंदर नारेबाजी भी की।  
नगर निगम सदन शनिवार सुबह जब 11 बजे शुरू हुआ तो पार्षदों का कोरम न पूरा होने की वजह से उसे एक घंटा स्थगित कर दिया। इसके बाद जब सदन शुरू हुआ तो पार्षदों ने बजट को लेकर ही सवालों की बौछार कर दी। पार्षदों का कहना था कि जब साल के अंतिम दिन बचे हैं तो अफसरेां को बजट पास कराने की चिंता आ रही है। बजट में दर्शाई गई आय को लेकर जब पार्षदों ने पूछा कि किस मद में कितनी आय हुई और कितना व्यय हुआ तो मुख्य लेखाधिकारी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए।  
सदन के अंदर पार्षद सौरभ देव ने कहा कि जब हाईकोर्ट की रोक है तो फिर नगर निगम अफसरों ने एक कंपनी को किस आधार पर 25 साल का ठेका दे दिया। यहां पर कई अन्य कंपनियों के नाम गिनाते हुए कहा गया कि इनमें से कोई अधिनियम का पालन नहीं कर रही हैं। इस पर भी अपर नगर आयुक्त प्रथम एजेंडे के पन्ने ही पलटते रहे। अंत तक इस पर कोई जवाब सामने नहीं आया।  


कार्यकारिणी के फैसले को चीफ इंजीनियर ने बताया गलत
इस दौरान पार्षद धीरेंद्र त्रिपाठी ने टेंडर के एक फैसले का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि पिछली बार कार्यकारिणी की बैठक में फैसला हुआ था कि अगर कोई पार्षद 10 प्रतिशत से बिलो दरों पर टेंडर डालता है तो उसकी निविदा स्वतरू निरस्त मानी जाएगी।  इस पर जवाब देने के लिए जब चीफ इंजीनियर कैलाश सिंह मंच पर आए तो उन्होंने कार्यकारिणी के फैसले को गलत ठहरा दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा करना नियमसम्मत नहीं है और यह वित्तीय अनियमितता में आएगा। इसके बाद पार्षदों ने कार्यकारिणी में लिए जाने वाले फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर ऐसा है तो जिस समय प्रस्ताव पास किया गया,उस समय इंजीनियरिंग विभाग से इसके बारे में क्यों जानकारी नहीं दी गई, बाद में उस प्रस्ताव को निरस्त कर दिया गया। उर्सला अस्पताल के सामने आवंटित होने वाली दुकानों को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन न करने का आरोप लगाया गया।